भीम सिंह,सिरमौर जिले के गिरिपार, आंजभौज और मस्तभौज क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। यह पर्व, जो बुराई को मिटाकर अच्छाई का संदेश देता है, पहाड़ी समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा है।
गृहणियां इस त्योहार के लिए पारंपरिक व्यंजन जैसे “मुड़ा” और “शाकुली” बनाने में व्यस्त हैं। मुड़ा गेहूं को उबालकर, सुखाकर और भूनकर तैयार किया जाता है, जिसे अखरोट, खील, बताशे और मुरमुरों के साथ परोसा जाता है।
ग्रामीण अपने घरों की लिपाई-पुताई में जुटे हैं, और पशुओं के लिए पहले ही चारा जमा कर लिया गया है। क्योंकि यह पर्व दो-तीन दिनों तक चलता है, इसलिए त्योहार से पहले सभी जरूरी काम निपटाने पर जोर दिया जाता है।
इस बार स्थानीय लोगों ने “ग्रीन दीवाली” मनाने का फैसला किया है। दिवाली के दिन सुबह अंधेरे में मशालों की रोशनी में लोग इकट्ठा होते हैं। सामूहिक नृत्य, वीरगाथाएं और पारंपरिक गीतों के साथ उत्सव की शुरुआत होती है। इसके बाद दिनभर लोकनृत्य और आपसी बधाई का सिलसिला चलता है।
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि दीपावली के दौरान किसान अपनी फसल और चारे की व्यवस्था में व्यस्त रहते हैं। इसलिए वे एक महीने बाद इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं, जिसे “बूढ़ी दीवाली” कहा जाता है।
बूढ़ी दीवाली सिरमौर की समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, जो समुदाय को एकजुट करने और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का संदेश देती है।