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जिला सिरमौर के इस विद्यालय में पहाड़ी बोली में होती है प्रार्थना सभा

जिला सिरमौर के इस विद्यालय में पहाड़ी बोली में होती है प्रार्थना सभा
शिक्षा नीति में बदलाव के साथ विद्यालय ने बदले नियम
डिजिटल सिरमौर/श्री रेणुकाजी

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शिक्षा नीति 2020 में बदलाव होते ही शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने के कयास भी विद्यालय के द्वारा नियमित तौर पर देखने को मिल रहे है। जिसका जीता जागता उदाहरण ददाहु विद्यालय में देखने को मिल रहा है। विद्यालय में प्रार्थना सभा हिंदी या अंग्रेजी में नही लेकिन पहाड़ी बोली में होती है।

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नई शिक्षा नीति (2020) का उद्देश्य भारत के युवाओं को समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। यह भारत की 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति जो की योजनाबद्ध और चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में लागू की जा रही है।

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बता दें कि देवभूमि हिमाचल पहाड़ी राज्य है, लेकिन वर्तमान में युवा वर्ग अपनी पहाड़ी बोली को भूलता नजर आ रहा है। लिहाजा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के एक स्कूल ने बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास करते हुए स्कूल की प्रार्थना सभा पहाड़ी बोली में शुरू करवाई है।

यह सराहनीय प्रयास रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र के तहत राजकीय कन्या उच्च विद्यालय ददाहू ने किया है। हालांकि अब स्कूल में छुट्टियां हो गई हैं, लेकिन इसके बाद नियमित रूप से पहाड़ी बोली में ही प्रार्थना सभा का आयोजन होगा।
विभिन्न भाषाओं में प्रार्थना सभारू दरअसल स्कूल में होने वाली प्रातः कालीन प्रार्थना सभा में पहाड़ी भाषा (सिरमौरी) को जोड़ते हुए छात्राओं ने राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान के अतिरिक्त पूरी प्रार्थना सभा पहाड़ी भाषा में की। स्कूल में पहले से ही तीन भाषाओं हिंदी, इंग्लिश और संस्कृत में प्रार्थना होती है. अब इसमें पहाड़ी को जोड़कर यह प्रार्थना सभा नियमित रूप से हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और पहाड़ी में होगी।

प्रार्थना के रूप में प्रसिद्ध लोकगीत श्रामो रा नावश् को एकदम ठेठ पहाड़ी में सुर, लय, ताल और साज के साथ गाया गया, जिसका बच्चों ने दिल खोल कर स्वागत किया और अपना भरपूर उत्साह दिखाया. इसके बाद प्रतिज्ञा, नारे और आज का विचार सब का सब एकदम पहाड़ी में हुआ. यह प्रार्थना, ज्ञानोदय प्राथमिक विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा भी उच्च विद्यालय की छात्राओं के साथ सामूहिक रूप से आनंदपूर्वक की गई. प्रार्थना सभा का बेहतरीन संचालन नौवीं कक्षा की छात्रा अवंतिका द्वारा किया गया।

कन्या उच्च विद्यालय के सरस्वती सदन की छात्राओं के इस प्रयास में मुख्य अध्यापिका ऊषा रानी का मार्गदर्शन और सदन के इंचार्ज अध्यापक अनन्त आलोक और निशा ठाकुर द्वारा तैयारी करवाई गई. प्रार्थना, छात्र प्रतिज्ञा, आज का विचार, टॉपिक और नारे का विशुद्ध सिरमौरी में अनुवाद अनन्त आलोक द्वारा किया गया, जो स्वयं भी हिंदी और पहाड़ी के लेखक हैं. स्कूल के अध्यापक अनंत आलोक ने बताया कि बच्चों को पहाड़ी बोली से जोड़ने का प्रयास किया गया है. इसके तहत प्रार्थना सभा का आयोजन पहाड़ी भाषा में किया गया. कुल मिलाकर कन्या विद्यालय ददाहू का यह प्रयास सराहनीय है, जिसकी खूब सराहना की जा रही है।

बहुभाषावाद और भाषा की शक्ति
दुनिया भर में समझा जाता है कि छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा या घरेलू भाषा में अवधारणाओं को अधिक तेजी से सीखते और समझते हैं। नई शिक्षा नीति ग्रेड 5 तक, लेकिन अधिमानतः ग्रेड 8 और उससे आगे तक, घरेलू भाषा मातृभाषा या स्थानीय भाषा में शिक्षा के माध्यम को बढ़ावा देगी।

बहुभाषावाद के समर्थन को प्रोत्साहित किया जाएगा क्योंकि कई भारतीय परिवारों में कई भाषाएँ बोली जाती हैं, परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बोली जाने वाली एक घरेलू भाषा हो सकती है जो कभी-कभी मातृभाषा या स्थानीय भाषा से भिन्न हो होती है।

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